कुछ लिख चूका
और ना जाने कितनी बाकि है.....
नहीं जनता !
या यूँ कहूँ कोई नहीं जनता .....
एक नया पृष्ट लिखता चला जाता हूँ
हर एक नए दिन के साथ ॥
नयी तारीख के साथ नया अध्याय
और उम्र के साथ दिनचर्या
किस अनुपात में
बढती और बदलती हैं,
मुझे आज तक पता नहीं ॥
ना जाने कितने पूर्णविराम
यहाँ हर वक़्त लगते हैं ॥
छपते जाते हैं आप ही खट्टे मीठे अनुभव ।
और श्याम ढलते ही कलम को
पृष्ट के छोर पर खड़ा पता हूँ
दिन समाप्त, पृष्ट समाप्त ..... ॥
रात के सन्नाटे में सब कुछ रुक सा जाता है,
और फिर सूरज की नयी किरणों के साथ
नयी सुबह ... नया पृष्ट ... नया अध्याय .....!
जिंदगी की किताब का
मैं लिखता चला जाता हूँ .........
इस नए और सुंदर से हिंदी चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteब्लागजगत पर आपका स्वागत है ।
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धन्यवाद
bahut sundar prastuti hai aaoko padhna acha laga.
ReplyDeleteसुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
ReplyDeleteऔर उम्र के साथ दिनचर्या
ReplyDeleteकिस अनुपात में
बढती और बदलती हैं,
मुझे आज तक पता नहीं ॥
ना जाने कितने पूर्णविराम
यहाँ हर वक़्त लगते हैं ॥
बहुत खूब और बहुत सुंदर
bahut sunder prastuti.
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत खूइब्सुरत अभिव्यक्ति ..यूँ ही लिखते रहें ....रक्षाबंधन की शुभकामनायें
ReplyDeleteखूइब्सुरत अभिव्यक्ति .. खूबसूरत अभिव्यक्ति है ... अच्छी प्रस्तुति है ...
ReplyDeleteरक्षा बंधन का त्योहार मुबारक ...
बहुत सुंदर लिखा है...मैं इतना जरूर कहूंगी कि शायद लापरवाहीवश कुछ शब्द गलत हैं या आपने ध्यान नहीं दिया....देखिएगा...बुरा लगा हो तो मुआफी चाहूंगी पर एक पाठक की हैसियत से यह हमारा उत्तरदायित्व है कि जहां कमी लगे वहां बताएं
ReplyDeleteयहां भी जरूर आएं....
http://veenakesur.blogspot.com/