Thursday 20 December 2012

कोने की टेबल......



आज फिर 
उस कोने की टेबल पे
इक परछाई है .....
जा के 
छु भर लूं 
या समेट  लूं उसे 
अपने आँचल में 
मेरे हालात की 
ये कैसी रुशवाई है ...... 
या फिर 
छोड़ आऊं 
एक  पैमाना 
हर रोज  की तरह, 
और छू लूं 
उसके सांशों की  महक 
जो मुझ में समाई है ..... 
आज फिर 
उस कोने की टेबल पे
इक परछाई है ......अजनबी 

गलतफहमी ....

जब देखा
जुनून से
चाँद आसमान से
जमीं  पे 
सरक गया .....
जब चाहा  
मन में 
दरिया का भी 
मुख मोड़ दिया...... 
एक 
वो हैं कि 
खातें हैं शिकश्त  
जब भी
टकरातें  हैं 
उनसे ...
कर देतें है
खुद  को समर्पित 
उनके निगाहें करम पर 
महजबीं ....
और वो समझते हैं 
की मजबूर 
हमसा नहीं
दुनियां में कोई .......