डर सा लगता है
तुम्हारे न होने के
अहसाश मात्र से ...
जाने कब से
बुझी
कुछ चिंगारियों ने
आज फिर
हवा ली है ...
मेरे आसियाने को
राख करने को
जबकि,
मुझे इंतजार था
उन यादों की
नम फुहार का
जो तुम्हारे आने पर
अक्सर दे जाती है
वो प्यार .
वो अपनापन
वो भीनी -भीनी सी
इत्र की खुसबू ...
मोगरे के फूलों से जुड़ा
वो प्यारा सा गजरा
वो कांच की
रंग विरंगी चूड़ियों की खनखनाहट
जो बरबस
मेरे कानों में गूंजती रहती है ...
जाने क्या क्या .....