इधर-उधर विखरी
अखवारों की कटिंग,
अखवारों की कटिंग,
मुझे बरबस निहारती
तो मन में इक टीस सी उठती ॥
वक़्त के साथ
अपना परिचय बदलती
विज्ञप्तियों की शक्ल में
गवाह थी मेरे जूनून ,
मेरे हालात की ..... ॥
नोकरी की तलाश में ............
रोज श्याम
दरवाजे पर पहुँचते पहुँचते
बदन टपकने को होता
कभी बारिश
और वो बारिश की
धीमी फुहार भी
तीलियों सी चुभती थी ॥
तो कभी कड़कती धुप में
पसीने से ......
अरसा गुजर गया
किन्तु दिन चर्या
ज्यूँ की त्यूँ
बदलती ही नहीं ........ ॥
मध्यम जलते
ढीबरी के प्रकाश में
हर रोज
अख़बारों से
नईं कटिंग निकलना
जीने की नईं सुबह तलाशना ॥
और फिर
मौन ,...
निशब्द ,...
निश्तब्ध ,.....
टीम टिमाते तारों के साथ
रात कब निकल जाय
खबर ही नहीं ...
सुबह होते ही
फिर निकल पड़ता
अनजान मंजिल की ओर
नोकरी की तलाश में .............