
मैं रोज लिखता हूँ
नयें शब्द पिरोता हूँ
छंदों में ....
तुम्हारे लिए ....
उभर के मन से
तुम्हारी सूरत
कविता में समां जाती है
हर पंक्ति दोहराते ही
महसूस करता हूँ
तुम्हारे स्पर्श को
अपनी शांसों में ......
मैं रोज लिखता हूँ
तुम्हारे लिए ....
तुम्हारे लिए .........