आज फिर
चाँद के जरिये
ऐ जिंदगी
तुम से रू-बरू होंगे ...
मीलों की धरातल की
दूरियां
सिमट के
शून्य होगी .....
दिल से दिल की गुप्तगू
और फिर
कुछ गिले शिकवे
तो कुछ हशीन लम्हें होंगे ....
आज फिर
चाँद के जरिये
ऐ जिंदगी
तुम से रू-बरू होंगे ......
यूँ तो
हर अहसास
जिन्दा है तुम्हारा
इस दिल में याद बनकर
तेरा अक्स
जो उभरा चाँद में
तो छूने की नाकाम कोशिश करेंगे ......
आज फिर
चाँद के जरिये
ऐ जिंदगी
तुम से रू-बरू होंगे .....!!
धर्म सिंह ....;;;.....(इक अजनबी)
बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना,
ReplyDeleteशुभकामना..!!
मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
चाँद के जरिये ही सही
ReplyDeleteबहुत सुन्दर |
आपका तहे दिल से सुक्र गुजार हूँ
ReplyDeleteकी आपने मेरी रचना को इस लायक समझा .....
किन्तु
संगीता जी मैं चर्चा मंच तक पहुंचूं कैसे .....
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteकविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !