Tuesday, 24 August 2010

दो पल का ख्वाब ....



गर्म सांसों

की महक से उनकी

हर रोम -रोम पुलकित हुआ ।

एक हलकी सी

छुवन से उनकी

खिल उठा हर अहसास ॥

दिल की हर आरजू

हो गई समाहित

उनके आगोश में ।

दो पल के ख्वाब में

जो वो मेरे करीब थे ॥

Saturday, 21 August 2010

मेरी ये जिंदगी भी एक किताब है...

मेरी ये जिंदगी भी एक किताब है,

कुछ लिख चूका


और ना जाने कितनी बाकि है.....


नहीं जनता !


या यूँ कहूँ कोई नहीं जनता .....


एक नया पृष्ट लिखता चला जाता हूँ


हर एक नए दिन के साथ ॥


नयी तारीख के साथ नया अध्याय


और उम्र के साथ दिनचर्या


किस अनुपात में


बढती और बदलती हैं,


मुझे आज तक पता नहीं ॥


ना जाने कितने पूर्णविराम


यहाँ हर वक़्त लगते हैं ॥


छपते जाते हैं आप ही खट्टे मीठे अनुभव ।


और श्याम ढलते ही कलम को


पृष्ट के छोर पर खड़ा पता हूँ


दिन समाप्त, पृष्ट समाप्त ..... ॥


रात के सन्नाटे में सब कुछ रुक सा जाता है,


और फिर सूरज की नयी किरणों के साथ


नयी सुबह ... नया पृष्ट ... नया अध्याय .....!


जिंदगी की किताब का


मैं लिखता चला जाता हूँ .........








Thursday, 19 August 2010

मेरे ब्लॉग/मेरी कविताओं के प्रेरणा श्रोत ................ संगीता दी /सोभना दी


दी..दी...दी... ...!!!
तुम मिले तो
क्या कुछ नहीं मिला
मेरी कलम को
लिखने का आशरा मिला
मन में एक अहसास जगा
भावनाएं बहने लगी
और मैं लिखता चला .....
एक के बाद एक नईं कविता
आज मैं हूँ ...आप हैं......
और बहुत सारे सह लेखक हैं
हर एक टिप्पणी
एक स्फूर्ति,
एक उर्जा देती है ....
लिखने को कुछ और नया
और मैं ........
लिखता ही जा रहा हूँ ....
निरंतर..... निश्छल ...विना रुके ......

Tuesday, 17 August 2010

काश मेरा दिल.......



काश मेरा दिल
भी इक समंदर होता ।
हर दुःख हर दर्द
अंदर ही छुपा होता ॥
गुजरे दिनों की
यादों की कश्तियाँ
रोज लहराती इस पर ।
कितना प्रफुल्लित
होता ये दिल ,
और
पहले की तरह
आज भी जीना आसान होता ॥
काश ये दिल भी
इक समंदर होता ।
हर दुःख हर दर्द
अंदर ही छुपा होता ॥
मैं दूर से शांत लहरों की
मानिंद नजर आता ,
मुख मंडल पर ना
कोई भाव भंगिमा होती ।
गम में डूबा भी मुस्कराता नजर आता ॥
काश मेरा दिल
भी इक समंदर होता ।
हर दुःख हर दर्द
अन्दर ही छुपा होता ॥

Monday, 16 August 2010

अभिव्यक्ति: "तुलसी जयंती "

अभिव्यक्ति: "तुलसी जयंती "

कुछ भी कहूँ दी आप ने हमें भी अपने साथ पीछे विद्यार्थी जीवन में पहुंचा दिया ......
मैं ही नहीं हर कोई अगर एक बार भी अपने विद्यार्थी जीवन को याद करेगा ... तो मन ही मन मुस्कराएगा जरूर
पर आज के विध्यार्ती ऐसे नहीं है .....

वो समां ही नहीं रही बहारों में,
गुल भी गुल भी गुलसन भी दर किनार है,
कागज के फूलों से खुशबू लेने का चलन है अब ||


Rhythm of words...: हूक!

Rhythm of words...: हूक!
....किसी के हाथ लग जाये न
ये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना ......
ये पंक्तियाँ मेरे जेहन से निकलती ही नहीं
पारुल जी
आपने क्या कुछ कहा डाला
इस रचना में
मेरे शब्द ...कम हैं व्यक्त करने को ...!!

तुम से रू-बरू होंगे ...!!!




आज फिर

चाँद के जरिये

ऐ जिंदगी

तुम से रू-बरू होंगे ...

मीलों की धरातल की

दूरियां

सिमट के

शून्य होगी .....

दिल से दिल की गुप्तगू

और फिर

कुछ गिले शिकवे

तो कुछ हशीन लम्हें होंगे ....

आज फिर

चाँद के जरिये

ऐ जिंदगी

तुम से रू-बरू होंगे ......

यूँ तो

हर अहसास

जिन्दा है तुम्हारा

इस दिल में याद बनकर

तेरा अक्स

जो उभरा चाँद में

तो छूने की नाकाम कोशिश करेंगे ......

आज फिर

चाँद के जरिये

ऐ जिंदगी

तुम से रू-बरू होंगे .....!!
धर्म सिंह ....;;;.....(इक अजनबी)

Sunday, 15 August 2010

पहल ...



कसक

दिल में थी

तो घर से निकल पड़े

और ना

जाने कितनी

अनगिनत मुश्किलों भरी

राहों से चल के

उनके कुचे में

आ के जब ठहरे ....

तो इक

आह सी निकली दिल से ...

और ठिठक के

मुड़ गए कदम वापस

अजनबी

नाम की तख्ती

देख के

दरवाजे पर ...!!



Thursday, 12 August 2010

तेरा साथ ......

ओंस की बूंदों
की मानिंद
तेरा साथ पल भर
का मिला अच्छा लगा ....
तपती रेत में
हलकी बारिश हुई
अच्छा लगा ....
यूँ तो इस
दिल की प्यास
भुझाने में मेरे आंसू भी
नाकाम थे ....
तेरे अहसास से
ठंडक सी मिली
अच्छा लगा ...
गगन शुन्य में
तेरी चाह में
भटकूँ दर बदर
हर रोज ....
ओंस की बूंदों
की मानिंद
तेरा साथ पल भर
का मिला अच्छा लगा ....

Tuesday, 10 August 2010

मैं क्या लिखूं ......

मन में आता है कि
आज मैं कुछ अलग लिखूं
मैं क्या लिखूं ......
गजल लिखूं
या कविता लिखूं
मैं क्या लिखूं .....
कहानी लिखूं या किस्से लिखूं
मैं क्या लिखूं .....
सोचता हूँ
कि जिंदगी के कुछ नए तराने लिखूं
मैं क्या लिखूं .....
आंदोलित मन के जज्बात लिखूं
मैं क्या लिखूं ....
या वो सब लिखूं जो मन में है
मैं क्या लिखूं .....
बिन मांझी के नाऊ सा है
ये मेरा चंचल मन
मैं क्या लिखूं .....
उध्वेलित मन पर कैसे काबू पाऊँ
मैं क्या लिखूं ....
मैं लिखुंगा, कुछ नया
अवस्य लिखूंगा
मेरी कलम मेरी पतवार बनेगी
मेरी नाऊ पार लगेगी ......
मेरी नाऊ पार लगेगी .......