Tuesday 10 April 2012

तुम्हारा अहसास...



डर सा लगता है

तुम्हारे न होने के

अहसाश मात्र से ...

जाने कब से

बुझी

कुछ चिंगारियों ने

आज फिर

हवा ली है ...

मेरे आसियाने को

राख करने को

जबकि,

मुझे इंतजार था

उन यादों की

नम फुहार का

जो तुम्हारे आने पर

अक्सर दे जाती है

वो प्यार .

वो अपनापन

वो भीनी -भीनी सी

इत्र की खुसबू ...

मोगरे के फूलों से जुड़ा

वो प्यारा सा गजरा

वो कांच की

रंग विरंगी चूड़ियों की खनखनाहट

जो बरबस

मेरे कानों में गूंजती रहती है ...

जाने क्या क्या .....

Wednesday 4 April 2012

बसंत जब तुम आओगे ...

ये बात मेरी हसरत
दिल में न जाने कब से बैठी थी
 तुम आओगी
बन कर सत रंगी फुहार
 पहन कर हरियाली चुनर
 सज धज के फूलों से रंग विरंगी
 और मैं लगाऊंगा झूले बाग़ में
 हर साल की तरह
 निहारूंगा तुमे हर दम
 पुलकित हो जाएँगी सब कलियाँ
 पा कर तेरा मर्म स्पर्श
 गूँज उठेंगे भौंरे
 चहक उठेंगे सब पंछी गण
 गायेंगे सब कल-कल करते झरने
 तुमारा ही नाम सुनाई देगा
 फिजाओं में, वो पत्तों की सरसराहट में


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