Monday 8 November 2010

उलझन ....


मैखाने में बैठा हूँ
तेरी यादों के साये में
पीने को तो पीता हूँ
मदहोश नहीं होता ।
क्यों आज भी दिल प्याषा है
उन यादों की गठरी का
सोच के हैरान हूँ
मालूम नहीं पड़ता ।
ये जाम भी तुझसा है
जो साथ नहीं देता
बोझिल सी पलकों को
आराम नहीं देता ।
इतना पी जाऊँ मैं
के होश गवां बैठूं ,
फिर भी
दिल के किसी कोने में
तेरी याद भटकती है ।
मैखाने में बैठा हूँ
तेरी यादों के साये में ,
पीने को तो पीता हूँ
मदहोश नहीं होता ।

3 comments:

  1. संजय भास्कर
    भाई के शब्द .....

    ला-जवाब" जबर्दस्त!!
    बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

    ReplyDelete
  2. बहुत खूबसूरती से जज्बातों को लिखा है ..

    ReplyDelete