Tuesday 9 November 2010

तुम्हारे लिए ....



मैं रोज लिखता हूँ
नयें शब्द पिरोता हूँ
छंदों में ....
तुम्हारे लिए ....
उभर के मन से
तुम्हारी सूरत
कविता में समां जाती है
हर पंक्ति दोहराते ही
महसूस करता हूँ
तुम्हारे स्पर्श को
अपनी शांसों में ......
मैं रोज लिखता हूँ
तुम्हारे लिए ....
तुम्हारे लिए .........

5 comments:

  1. क्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.

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  2. हर पंक्ति दोहराते ही
    महसूस करता हूँ
    तुम्हारे स्पर्श को
    अपनी शांसों में ...

    बहुत खूब .. इसी को प्रेमका एहसास कहते हैं .. लाजवाब रचना.

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  3. नव-वर्ष की शुभकामनाएँ आपको और आपके परिवार को भी

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