Saturday 4 September 2010

पर अबकी मैं जरूर आऊंगा .....

हर साल की तरह
इस साल भी खूब फूला होगा बुरांश डाडों में .........,
खूब खिली होगी फ्योंली
विठा पाखों पर ......... ॥
पर साल मैंने कहा था
जब डाडों में बुरांश फूलेगा
तो मैं घर आऊंगा ।
बुरांश फूले
फ्योंली फूली
पर मैं न आ पाया ॥
और कितनी उदास थी तुम
अबकी मैं जरूर आऊंगा ...........!
मैं जनता हूँ,
रोज जा के ठहरती हैं तुमारी नजरें
गाँव के रास्ते पर
मेरी राह में ।
अबकी मैं जरूर आऊंगा ...........!
दबी-दबी आवाजों में
मेरा ही जिक्र होता है
पनघट पर, घसियारों में
जहाँ से भी गुजरती हो,
और मन मसोस कर
रह जाती होंगी तुम ।
अबकी मैं जरूर आऊंगा ...........!
सखियों की बातो को
बहानों से टालती,
घर में सबको
दिलासा देकर खुद उदास होती होंगी
बंद कमरे में ।
अबकी मैं जरूर आऊंगा ...........!
मेरा भी मन नहीं लगता
यहाँ तुमारी याद में,
मुन्ने की किलकारियों को
मन तरसता है,
तुमे जी भर के देखने को
आँखें तरसती हैं ।
अबकी मैं जरूर आऊंगा ............!
हर साल की तरह
इस साल भी खूब फूला होगा बुरांश डाडों में ........,
खूब खिली होगी फ्योंली
विठा पाखों पर ........ ॥

डाडों=पहाड़, विठा पाखों= छोटे छोटे पहाड़ियां , फ्योंली, बुरांश = गढ़वाल के खूबशूरत फूल

5 comments:

  1. वाह! बहुत उम्दा!

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  2. एक बड़ा प्यारा शेर याद आ गया :
    मौत आई , उसे तो आना ही था एक दिन,
    जो आप आते तो एक बात भी थी !

    अच्छी अभिव्यक्ति ...

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  3. मन के भावों को बहुत सादगी और जीवंतता से लिखा है ..

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  4. बहुत सुन्दर रचना बुरांश के फूलों के माध्यम से अपनी उपस्थिति का आभास देती हुई अच्छी अभिव्यक्ति |

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  5. दबी-दबी आवाजों में
    मेरा ही जिक्र होता है
    पनघट पर, घसियारों में
    जहाँ से भी गुजरती हो,
    और मन मसोस कर
    रह जाती होंगी तुम ।
    अबकी मैं जरूर आऊंगा ......
    वाह दिल को बात लिख दी अपने ... न मिलने का गम बहुत कचोटता है ...

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