Tuesday 10 August 2010

मैं क्या लिखूं ......

मन में आता है कि
आज मैं कुछ अलग लिखूं
मैं क्या लिखूं ......
गजल लिखूं
या कविता लिखूं
मैं क्या लिखूं .....
कहानी लिखूं या किस्से लिखूं
मैं क्या लिखूं .....
सोचता हूँ
कि जिंदगी के कुछ नए तराने लिखूं
मैं क्या लिखूं .....
आंदोलित मन के जज्बात लिखूं
मैं क्या लिखूं ....
या वो सब लिखूं जो मन में है
मैं क्या लिखूं .....
बिन मांझी के नाऊ सा है
ये मेरा चंचल मन
मैं क्या लिखूं .....
उध्वेलित मन पर कैसे काबू पाऊँ
मैं क्या लिखूं ....
मैं लिखुंगा, कुछ नया
अवस्य लिखूंगा
मेरी कलम मेरी पतवार बनेगी
मेरी नाऊ पार लगेगी ......
मेरी नाऊ पार लगेगी .......

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